.......
हर शाम कुछ टूटने सा लगता है
भीतर ही भीतर
बिना किसी आवाज के
डूबते सूरज के साथ
बदलते मौसम के साथ
और कुछ नहीं कर पता इन्सान
............देव
हर शाम कुछ टूटने सा लगता है
भीतर ही भीतर
बिना किसी आवाज के
डूबते सूरज के साथ
बदलते मौसम के साथ
और कुछ नहीं कर पता इन्सान
............देव
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