Monday, October 28, 2013

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हर शाम कुछ टूटने सा लगता है 
भीतर ही भीतर 
बिना किसी आवाज के
डूबते सूरज के साथ 
बदलते मौसम के साथ
और कुछ नहीं कर पता इन्सान 

............देव

Monday, September 30, 2013

तेरी खामोशी भी न एक दिन तुफ़ान ला देगी

Wednesday, September 25, 2013

सुना है बहुत कुछ जानते हो मेरे बारे में
भला कैसे जानते हो
जबकि मै खुद जानता ही नही
की मै हूं क्या.....
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फिर गूञ्ज रही है
मेरे कानो मे वो ध्वनि 
सम्वेद्ना से भरे दो शब्द
जिससे न कह पाया कभी
वो अब भी आता है
चौखट पर मेरे 
धीरे से होती है आहट
और वो धीरे से होने वाली आहट
गूञ्जती है कई दिनो तक कानो मे
निरन्तर बिना किसी अवरोध के
और मै खो जाता हु उसी मे
-
-------------#देव

Tuesday, September 10, 2013

यहां दाढ़ी के नकाब में
वासना के पुजारी घूमते 
रहते हैं,
बचना चाहती है हर लड़की
इन बाबाओं से
जो खुद को भगवान का दर्जा दिलवाते हैं
और फिर अपना असली चेहरा दिखाते हैं
नोच देना चाहते हैं पंख
उड़ना सीखती लड़कियो के
और विरोध करने पर
औरतो को सामने खड़ा करके
उनके ओट में छिप जाते हैं,
दूसरो को सिखाते है
ब्रह्मचर्य का पाठ
और खुद वासना में लिप्त
पाए जाते हैं


----------------#देव

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जाकर भी नहीं जा सकता 
आकर भी नहीं आ सकता 
ढूंढता है कुछ पर पा नहीं सकता 
ये मन का भ्रम या है कुछ और 
जो कहना चाहता हूँ 
तुमसे कह नहीं सकता 

----------------#देव
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धर्म के नाम पर लड़ने वाला
नहीं होता अपने धर्म करीब
न ही बचाने आता है
ईश्वर कभी उस धर्म का
जला डालो सारे ग्रंथ जो
करती हैं हमें लड़ने पर मजबूर
तोड़ दो अपनी माला
जिसे जपते रहते हो दिन-रात 
बस दिखावे के लिए
कभी छत से कूदकर देखना
क्या आता है
तुम्हारा पैगम्बर या फिर ईश्वर तुम्हे बचाने के

--------------#देव
 — 

Thursday, September 5, 2013

हम जिससे भी सीखते है वो चाहे छोटा हो या फिर बड़ा वो हमारा शिक्षक ही होता है 
और जिन्हें हम सिखाते है उनके लिए हम शिक्षक होते हैं 
यही तो नियम है संसार का___ #देव 

Friday, August 30, 2013

अंधेरे कमरे में लगाता है चक्कर
वो भी छत पर लटके पंखे के साथ
उसे कुछ समझ में नही आता
फिर घूम रहा है,
दूर कहीं बिल्लियों की
लड़ने की आवाज भी
उसे एक रहस्यमयी संगीत लगती है
और उसे ये सुनना चाहता है
चक्कर लगाते हुए,
दीवार पड़ा कैलेण्डर
जो शायद दशको से यही टंगा है
उड़ उड़कर निशान बना चुका है
दीवार पर अर्द्धचंन्द्राकार
अचानाक ही होती है
दरवाजे पर दस्तक
और वो जग जाता है
अपने दिवास्वप्न से और रख
छोड़ता है स्वप्न को आगे के लिए
_______________ #देव
 — feeling ये मत सोचना की मै पगला गया 
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उसी एक ख्वाब में रोज-रोज जाना चाहता है
पर कुछ अधूरा सा रह जाता है
जब उसकी आंखे खुलती है

..... #देव
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कल रात से चाँद गायब है
किसी ने देखा क्या
यही कहीं बादलो में खोया था
किसी ने देखा क्या
--------------- #देव
 — feeling आज कल तनहा है हम दोनों वो आकाश में और मै धरती पर.

Sunday, August 25, 2013


जानते हो न मै कौन हूं
चलो मै ही बता देता हूं
मै छाता हूं
मै नही जानता
मेरी शुरुआत कैसे हुई
बस इतना जानता हूं
जबसे हूं इंसानो की सेवा में लगा हूं..
तेज धूप हो
या फिर तेज बारिश
खींच कर तान देते हो
मुझे अपने ऊपर
काले रंगो से मुझे कुछ ज्यादा ही प्यार है
भले ही तुमने मुझे रंग बिरंगा बनाकर
छतरी नाम रख दिया
मै ही तो धूप और बरसात झेलता हूं
बरसात में तो सड़को पर बस छाते ही चलते हैं
जैसे खुद ही चल रहे हो
या फिर भाग रहे हो
एक दूसरे को पीछे करने के लिए
पर उसके हाथो में आना चाहता हूं
जो भीगता है बारिश में
और जल जाना चाहता है तेज धूप में
कितनी ही कोशिशे की
उसके हाथो में जाने की
पर हर बार नाकाम रहा...
मुझे सब बारिश और धूप में याद करते हैं


बाकी समय मै पड़ा रहता हूं
किसी कोने में
जैसे किसी कोई फर्क ही न हो
मेरे होने या न होने से चाहे
मुझे चूहे कुरत दे
या फिर दीमक चट कर जाए
पर क्या फर्क पड़ता है
तुम इंसानो को
मै तो बस एक र्निजीव सा छाता हूं
कभी सोचा तुमने मै तुम्हारी इज्जत और शरम हूं
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-------#देव

Sunday, August 18, 2013

(गुलजार साहब के जन्मदिवस पर)
कभी ज़िन्दगी से गिले शिकवे दूर किए
तो कभी दिल को फुरसत के दिन ढ़ूढ़ने दिए,
कभी दो दिवानो को शहर भर में घुमाया
तो कभी नाम को गुम हो जाने दिया,
कभी आने वाले पल को जाने दिया
तो कभी हज़ार राहें मुड़कर देखने दिया
कभी अपने दिए सामान को मांगने चल दिए
तो कभी सीली सीली बिरह की आग में जलने दिया
कभी जिगर की आग से बीड़ी जला दी
तो कभी दिल को बच्चा बना दिया
कभी इश्क में नमक मिलाया
तो कभी कजरारे नैनो से मदहोश कराया
और कर दिया जय घोष पूरे दुनिया में...
जय हो से
ऐसे ही तो है गुलजार साहब
----------- ‪#‎देव‬

Sunday, August 11, 2013

बादल आते ही नही अब 
जब बादल नही आते 
तो बरसात भी नही आती 
अब तुम ही बताओ 
बिना बारिश के कौन 
खुशहाल रहता है 
-- 
परदेश पिया रहने पर 
ले जाते थे संदेश 
ये बादल.. 
नयी दुल्हन के बाबुल 
के आने का संदेश 
ले जाते थे 
ये बादल 
बागो में झूला और 
सावन के उत्सव 
करवाते थे ये बादल 
--- 
कभी सफेद बगुले 
तो कभी परियां 
बन जाते थे आकाश 
में बच्चो के लिए 
ये बादल 
--- 
धान रोपती औरतों 
के साथ गीत गाते थे 
ये बादल 
कभी टिपटिप तो कभी रिमझिम 
संगीत निकालते थे 
ये बादल 
--- 
सच बताना क्यूं रुठ 
गया तू हमसे बादल 

----------देव
आज फिर वो सारी रात
सो नही पाया
बिजली चमक कर उसे 
डराती रही
टूटे टीन की छत 
टिपटिप की आवाज
लगाती रही
सारी रात करवटे बदलकर
गुजार दी
और सोचता रहा
अब फिर सुबह न मिलेगा
उसे काम
छोटे बच्चे
और गर्भवती बीबी को
फिर आज की तरह
भूखे पेट सोना पड़ेगा
फिर उसे अपने देशी दारु
के लिए.. उधारी करनी होगी
--------देव‬